गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

कल जिसे छोड़ दिया था आज उसका सम्मान ?


राज्योत्सव में आज एक और कमाल होने वाला है। राज्योत्सव के पहले ही दिन जिस महिला पत्रकार को जनसंपर्क विभाग ने तेज़ बारिश में माना के पास अकेल छोड़ दिया था , उसका सम्मान किया जाने वाला है। रायपुर के सांध्य दैनिक तरुण -छत्तीसगढ़ के अलावा आकाशवाणी रायपुर में बतौर संवाददाता कार्यरत शगुफ्ता शिरीन को स्वर्गीय चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता पुरस्कार के लिए
चुना गया है। आप सभी को बताते चलूँ- की राज्योत्सव के प्रथम दिवस जब शगुफ्ता रिपोर्टिंग के लिए सरकारी बस से नयी राजधानी के लिए रवाना हुई थी, उस बस में डीज़ल ने हो पाने के कारण यह बस एक घंटे तक पेट्रोल पम्प में खड़ी रही थी। बाद में शगुफ्ता डेढ़ घंटे बाद कार्यक्रम स्थल पहुँची और जनसंपर्क विभाग की एक महिला अधिकारी के साथ बैठ गयी . अचानक पानी गिरने से जब मीडिया - गैलरी में अफरा तफरी मची तो शगुफ्ता ने अपना बैग महिला जनसंपर्क अधिकारी को पकड़ा दिया और बारिश से बचने की जुगत में भीड़ में खो गयी। जब बारिश कम हुई और भीड़ बाहर निकली तब तक महिला जनसंपर्क अधिकारी हर्षा पौराणिक अपनी गाड़ी और शगुफ्ता का पर्स वाला बैग लेकर राज्योत्सव स्थल से जा चुकी थी। आधे से ज्यादा पत्रकार भी वहां से खिसक चुके थे . शगुफ्ता पहले तो अकेली भटकती रही फिर एक जनसंपर्क विभाग के नए नवाड़े अधिकारी से निवेदन किया की वह उसे जनसंपर्क विभाग तक पहुंचा दे। बारिश फिर शुरू हो चुकी थी , उस अधिकारी ने अपनी मोटर सायकल से शगुफ्ता को माना तक लाया और घर से काल आ जाने पर आगे जाने से मना कर दिया। पर्स न होने के कारण शगुफ्ता ने उससे और एक ग्रामीण से पैसे मांगे और ऑटो का इन्तेज़ार करने लगी। इसी बीच जनसंपर्क विभाग की एक और गाड़ी वहां से गुजरी तो शगुफ्ता ने उसे हाथ देकर रोका। इस गाड़ी के ड्राइवर ने कहा की इस गाडी में महिलाओं को नहीं सिर्फ पुरूषों को बैठाने का आदेश है , इतना कहकर ड्राइवर ने गाडी आगे बढ़ा ली। बरसते पानी में आखिर अकेली शगुफ्ता ऑटो से वापस घर आयी और रात में ही महिला जनसंपर्क अधिकारी के घर जाकर उसे खूब खरी खोटी सुनायी। सबकी एक लिखित शिकायत भी की है उसने। अब ऐसी स्थिति में अचानक उसके सम्मान से मैं व्यक्तिगत रूप से हतप्रभ हूँ . ये तो अपमान के बाद सम्मान हुआ न। शगुफ्ता के संघर्ष को सलाम और सम्मान के लिए बधाई .
फेसबुक में भड़ास...
छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में अभी भी ऐसे पत्रकार है जिनकी नौकरी मजबूरी हो  सकती है लेकिन खबरों को वे अपने अखबार में न सही फेसबुक में प्रकाशित कर ही लेते है । राजधानी के दर्जनों पत्रकार फेस बुक में रोज खबरें डालते मिल जायेंगे । वहीं जनसंपर्क का किस तरह से बड़े अखबार पर दबाव है इसका भड़ास भी फेसबुक पर उतरते दिख जायेगा ।
और अंत में ....
नवभारत के राज्योत्सव सप्लिमेंट को देखकर एक प्रतिद्धंदी अखबार के  बड़े कर्मचारी का कमेंट्स था हम भी परिशिष्ट के बहाने एक ही बार में अपनी क्षतिपूर्ति कर लेंगे ।

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