गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

पत्रकारिता के पुरोधा नहीं रहे ...


छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के पितृ पुरूष माने जाने वाले पंडित राज नारायण मिश्रा का निधन की खबर से उन्हें जानने वालों को दुख से भर दिया ।
अपनी विशेष लेखन शैली और दबंग पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले मिश्रा जी को सभी दा के नाम से जानते थे । कभी घूमता हुआ आईना के लिए हर बुधवार को देशबंधु खरीदने के लिए मजबूर करने वाले दा ने निर्भिक पत्रकारिता को बुलंदी तक पहुंचाया । 
क्या नेता क्या अधिकारी सभी उनके कलम के कायल थे।   
   श्रमजीवी पत्रकारों को पत्रकारिता के गुढ़ रहस्य समझाने वाले दा ने ग्रामीण रिपोर्टिग में नया आयाम स्थापित किया था । उनके निधन से रिक्त हुए जगह की भरपाई हो पाना मुश्किल है । वे हमेशा याद रहेंगे । विनम्र श्रद्धांजलि ।

नैयर जी भी फेसबुक में
नौकरी से रिटार्यड मेंट के बाद बबन प्रसाद मिश्रा के बाद अब रमेश नैयर भी अपनी लेखनी से फेसबुक के पाठकों से रूबरू होंगे । अपनी कलम की धार से पत्रकारिता को नया आयाम देने वाले रमेश नैयर का स्वागत ।

दूसरा साल गिरह ?
अपनी दबंग पत्रकारिता के लिए जल्द ही छत्तीसगढ़ में चर्चा में आने वाले पत्रिका समूह ने अपना दूसरा सालगिरह प्राची देसाई को पेश कर मनाया । दूसरे साल गिरह कैसे हुआ यह मैनेजमेंट का फंडा है लेकिन लोग पूछ रहे है छत्तीसगढ़ में पत्रिका को शुरू हुए दो साल कैसे हो गया ?

सुकांत का इस्तीफा ...
प्रेस क्लब के कोषाध्यक्ष सुकांत राजपूत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया । 23 अक्टूबर को कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी चुनाव नहीं होने को लेकर उनका इस्तीफा आने की चर्चा है हालांकि चर्चा इस बात की भी है कि हरिभूमि से पत्रिका जाने के बाद उन्हें प्रेस क्लब की राजनीति से दूर रहने की चेतावनी मिली थी । सच क्या है यह तो वही जाने लेकिन चर्चा को कैसे कोई रोक सकता है ।
बड़े-बड़ो का दूम हिलाना
छोटों का जीभ लपलपाना
राज्योत्सव बनाम लुटोत्सव को लेकर सरकार ने प्रचार प्रसार के लिए लंबा बजट बनाया है । करोड़ों रूपये विज्ञापन में खर्च किये जायेगे । इसे लेकर अखबार मालिकों की लार भी टपकने लगी है । कहा जा रहा है कि बड़े अखबार वाले विज्ञापन के लिए जनसंपर्क के अधिकारियों के सामने दुम हिलाते नजर आ रहे है तो छोटे अखबार वाले जीभ लपलपा रहे है सबसे ज्यादा परेशान साप्ताहिक व मंथली वालों की है जिन्हें विज्ञापन तो मिलेगा लेकिन उनकी कीमत उनकी चाटुकारिता के आधार पर भी तय नहीं होती ।

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