प्रेस क्लब के द्वारा आयोजित क्रिकेट स्पर्धा ने नया इतिहास रचा है। मैज जीतने उतरी कई टीमों की करतूत न केवल शर्मनाक रही बल्कि पदाधिकारियों की जैसे-तैसे मैच कराने की कोशिश ने इस टुर्नामेंट को न केवल विवादास्पद बना दिया बल्कि ऐसे आयोजन पर ही सवाल उठा दिया।
दरअसल 23 अक्टुबर को अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी चुनाव नहीं कराने वाले पदाधिकारियों के कुर्सी प्रेम की वजह क्या है यह तो वही जाने लेकिन क्रिकेट के बहाने राजनीति ने प्रेस क्लब की मर्यादा को ठेस पहुंचाने में कई पत्रकार भी पीछे नहीं रहे।
कहने को तो स्पर्धा में बीस टीमों ने हिस्सा लिया लेकिन ऐसी कोई भी टीम नहीं थी जिनके पूरे खिलाड़ी प्रेस क्लब के सदस्य हों। यदि प्रेस में काम करने वालों को खेलने की छूट को आधार मान भी लिया जाए तब भी क्रिकेट के नाम पर जो तमाशा हुआ उसकी जिम्मेदारी से न तो पदाधिकारी ही बच सकते है और न ही पत्रकार ही अपने को निर्दोष बता सकते हैं।
प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के इसी लिजलिजे रवैये के चलते कई टीमों ने मैच जितने लिए शर्मनाक खेल खेला और ऐसे लोगों को अपनी प्रेस के बैनर तले मैदान में उतारा जो न केवल प्रोफ़ेशनल खिलाड़ी थे बल्कि उनका प्रेस क्लब या अखबार के दफ़्तर से कोई लेना देना रहा। मैच जीतने के लिए किए इस कृत्य को लेकर सदस्यों में बेहद आक्रोश है लेकिन आश्चर्य का विषय तो यह है कि अपनी मनमानी पर उतारु पदाधिकारियों ने जानकारी के बाद ऐसे लोगों को न केवल खेलने दिया बल्कि ऐसी टीमों को संरक्षण भी दिया। जबकि कायदे से उन टीमों को जिन्होने प्रेस कर्मचारियों को छोड़ दूसरी जगह से खिलाड़ी मंगाए थे उन्हे ब्लेक लिस्टेड कर देना था। यहां तक कि जो टीम फ़ायनल जीती वह भी एक ऐसे खिलाड़ी के खेल से जीती जो प्रेस का कर्मचारी ही नहीं है।
सद्भावना के नाम पर भले ही इस शर्मनाक पहलु को नजर अंदाज कर दिया जाए लेकिन सामान्य सभा में यह मुद्दा जरुर उठेगा जिसका जवाब पदाधिकारियों को देना ही होगा।
आसिफ़ पहुंचे फिऱ प्रेस क्लब।
पंद्रह दिन पहले ही प्रेस क्लब से अलग होकर एसोसिएशन बनाने वालों के कैरन क्लब का उद्घाटन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार आसिफ़ इकबाल का क्रिकेट मैच के फ़ायनल में पहुंचना चर्चा का विषय रहा। पदाधिकारियों की करतूतों पर नाराज बताए जा रहे आसिफ़ इकबाल की प्रेस क्लब के कार्यक्रम में उपस्थिति से नए बने एसोसिएशन को झटका भी लगा है।
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