गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

ये कैसी सूचना क्रांति का दौर है...


एक तरफ जब सूचना क्रांति के इस दौर में दुनिया भर की खबरे आसानी से मिल जाने का दावा किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ प्रिंट मीडिया के एडिशन के चक्कर में पड़ोसी जिले की खबरों से अनजान होने का खतरा बढ़ चुका है। जितना बड़ा अखबार उतना ज्यादा एडिशन ने सूचना क्रांति के दावों की पोल खोल कर रख दी है।
छत्तीसगढ़ में स्थापित अखबारों को इससे कोई मतलब भी नहीं रह गया है नवभारत पत्रिका भास्कर हरि भूमि नई दुनिया जैसी अखबारों का राजधानी से प्रकाशन हो रहा है। कहने को ये छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रसार वाले अखबारों का तमगा लिये बैठे हैं लेकिन एडिशन के चक्कर में खबरे सिमट कर रह गई है। रायपुर वालों को पड़ोसी जिले की खबरे ठीक से नहीं मिलती तो पड़ोसी जिले को राजधानी की खबरें ठीक से नहीं मिल पाती।
सूचना क्रांति के दौर में इस गड़बड़झाले से लोग हैरान है और वे अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं तो आश्चर्य नहीं है।
अब तो पत्रकार वार्ता लेने वाले लोग भी पत्रकारों से निवेदन करते हैं कि उनकी खबर ऐसी जगह लगाये जिसे पूरे छत्तीसगढ़ भर के लोग पढ़ सके। एडिशन के इस चक्कर की वजह से अच्छी बातें भी लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है लेकिन इससे मीडिया जगत को कोई लेना देना नहीं है।
हर जिले या ब्लॉक के लिए अलग एडिशन की वजह सिर्फ और सिर्फ  विज्ञापन की भूख होकर रह गई है। और इस वजह से पाठकों को पता नहीं चल पाता कि पड़ोसी जिले में सरकार की क्या करतूत है या लोगों के साथ न्याय-अन्याय कैसा हो रहा है।
छत्तीसगढ़ के मीडिया जगत में एडिशन के इस चक्कर ने ग्रामीण रिपोटिंग को भी ध्वस्त कर दिया है इसकी वजह से गांवों के विकास में सहायक योजनाएं भी दम तोडऩे लगी है।
एडिशन को लेकर भले ही अखबार वाले खुश हो लेकिन इससे होने वाले नुकसान की भरपाई मुश्किल है।
और अंत में..................
इन दिनों राजनैतिक गलियारें में एक चर्चा जोरों पर है कि जो बादल गरजते हैं वे बरसते नहीं लेकिन जो गरजते हैं वे जल्दी सेट जरूर हो जाते है।

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