संवाद में विज्ञापन देने नियम कानून नहीं
छत्तीसगढ़ संवाद में विज्ञापन जारी करने का कोई नियम कानून नहीं है। जो जितना चापलूती करेगा उसे उतना विज्ञापन जारी किया जाता है। चापलूसी के आगे प्रसार संख्या भी बेमानी है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के इस विभाग में भर्राशाही और अफसर शाही इस कदर हावी है कि कई अखबार वाले भी कुछ कहने-छापने से हिचकते हैं। इस संबंध में जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई तो यह जानकारी संवाद में चल रहे भर्राशाही का पोल खोलने के लिए काफी है।
संवाद ने 1 मई 2009 से 25 जुलाई 2009 से 25 जुलाई 2009 के बीच जो विज्ञापन जारी किए है दिल्ली से प्रकाशित होने वाले महामेघा को 50 हजार का विज्ञापन दिया गया। इसी तरह भिलाई से प्रकाशित अगास दिया को 80 हजार का विज्ञापन दिया गया। हरिभूमि और प्रखर समाचार को एक ही ग्रेट का बनाया गया और दोनों को तीन-तीन लाख का विज्ञापन दिया गया। सर्वाधिक विज्ञापन मुख्यमंत्री के गृह जिले राजनांदगांव के अखबारों को दिया गया जबकि दिल्ली के हिन्दी जगत को 50 हजार और इंदौर के ग्राम संस्कृति को 30 हजार का विज्ञापन दिया गया दिल्ली के ही नया ज्ञानोदय को 25 हजार लोकमाया हिन्दसत को 50-50 हजार का विज्ञापन दिया गया पटना के राष्ट्रीय प्रसंग को 75 हजार का विज्ञापन दिया गया।
इसके मुकाबले छत्तीसगढ़ के अखबारों को 5-10 हजार का विज्ञापन ही दिया गया। इस आंकड़े से स्पष्ट है कि जनसंपर्क और संवाद में किस तरह का भर्राशाही व चापलूसी चल रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इन विज्ञापनों की आड़ में कमीशनखोरी की चर्चा भी जोर-शोर से है।
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