गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

पांडे का बिफरना और पत्रकारों की चुप्पी

वैशाली नगर के उपचुनाव में भाजपा पराजित हो गई और कांग्रेस जीत गई। इस हार जीत को लेकर मीडिया में मौजूद राजनैतिक समीक्षकों के अपने दावे है। परिणाम आने के पहले भी यहां के प्रतिष्ठत अखबारों ने उपचुनाव के परिणाम को लेकर क्या कुछ नहीं छापा। इस समीक्षा को लेकर मीडिया की भूमिका पर सवाल भी उठे। लेकिन अपने मुंह के लिए विख्यात पूर्व भाजपा नेता वीरेन्द्र पाण्डे इन दिनों किसानों के साथ खड़ें है। वे किसानों के साथ ऐसे अचानक क्यों खड़े है। यह तो वे ही जाने लेकिन 7 नवम्बर को वे प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में डॉ. रमन सिंह के खिलाफ विषवयन करते-करते विपक्षी दलों की भूमिका पर तो भड़के ही मीडिया पर भी बिफर पड़े। उन्होंने कहा कि रमन सरकार को लेकर संचार माहयमों की भूमिका भी संदिग्ध है। इतने पर भी वे चुप नहीं रहे उन्होंने बताया कि मतदान की सुबह यहां से निकलने वाले प्रतिष्ठित आखबारों ने रमन के रोड शो के साथ भाजपा की जीत को जोड़ते हुए खबरें छापी। वीरेन्द्र पाण्डे के आरोपों पर किसी भी पत्रकार ने कोई सवाल इसलिए भी नहीं उठाया क्योंकि पत्रकार जानते हैं कि इस तरह की खबरें प्रतिष्ठत व बड़े आखबार एक साथ कब और क्यों छापते है। आखबारों के साथ पत्रकारों की विश्वसनियता घटने की वजह भी यही है कि आखबार मालिक सरकारी विज्ञापन या भ्रष्टमंत्रियों के पैसों के सामने घुटने टेक देते है और सब कुछ फिल्ड में काम करने वाले पत्रकारों को झेलना पड़ता है। वीरेन्द्र पाण्डे अपनी बेबाक छवि के लिए जाने जाते हैं इसलिए भी अपनी भड़ास निकाल पाये। मीडिया की इस नई भूमिका को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। कसडोल के विधायक राजकमल सिंघानिया से त्रस्त सैनी परिवार के द्वारा लिए गए पत्रकारवार्ता का हश्र सबकों मालूम है फिर सैनी परिवार क्यों बड़े आखबार पर विश्वास करे। वर्तमान में बड़े आखबार जिस तरह से जीभ लपलपाने लगे हैं उससे छोटे आखबारों की स्थिति और भी खराब हुई है अब वे भी बड़े आखबारों की राह पर चलने लगे है तो फिर पत्रकारिता को जिल्लत उठानी ही पड़ेगी।
और अंत में....
 जनसंपर्क विभाग इन दिनों मुख्यमंत्री के सचिव ब्रजेन्द्र कुमार सिंह लेकर चर्चा में हैं। अभी तक तो सीपीआर-डीपीआर आफिस ही जाते थे लेकिन ब्रजेन्द्र कुमार महीनों आफिस नहीं आते। अब जिसे संबंध बनाना हो वे मंत्रालय जाये। लेकिन कुछ लोगों की पीड़ा इतनी बस नहीं है असली पीड़ा तो उनकी द्धिवेदी व कुरेटी है जिनकी वे शिकायत करके भी मन हल्का नहीं कर पा रहे है। मंत्रालय के लिए पास का जो झंझट है।

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