पूरी तरह से व्यवसायिक रुप ले चुकी छत्तीसगढ क़े बड़े अखबारों ने नगरीय निकाय के चुनाव में जितना बड़ा पैकेज उतना बड़ा मैसेज, की राह पर चलकर बेशर्मी की सारी हदें तो पार की ही आम आदमी के विश्वास पर भी प्रहार किया है।
इतना ही नहीं मिशन मानी जाने वाली इस संस्था पर जिस तरह से धंधेबाजी करने के आरोप लगने लगे हैं वह इसकी विश्वसनियता के लिए ठीक नहीं है। कभी अखबारों पर छपने वाली खबरों के आधार पर सरकार कार्रवाई करती थी लेकिन अब कार्रवाई नहीं होती तो इसकी वजह अखबार मालिकों का धंधेबाजी वाला रूख है। सत्ता हिलाने का दंभ भरने वाले पत्रकार भी अब सिर्फ नौकरी कर रहे हैं और अपनी कलमों को गिरवी रख दिया है।
छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की अपनी पहचान रही है। यहां निकलने वाले अखबारों के मालिकों ने भी धंधेबाजों की भूमिका से अपने को हमेशा दूर ही रखा लेकिन राय बनने के बाद अखबारों मालिकों का रवैया बदला है।
पिछले दिनों एक प्रतिष्ठित अखबार ने जब अपने कवर पृष्ठ पर तेल वाला विज्ञापन छापा तो इस अखबार के संपादक ने इस्तीफा सौंप दिया था। लेकिन जब इसी अखबार के प्रबल प्रतिद्वंदी दैनिक भास्कर ने चार दिन पहले पूरे कवर पेज पर विज्ञापन प्रकाशित किया तो इस अखबार के पत्रकारों को कितनी शर्मिन्दगी उठानी पड़ी इसका अंदाजा शायद अखबार मालिक को भी नहीं होगा। बेचारे पत्रकार किसी के सामने मुंह खोलने की स्थिति में नहीं रह गए है। नीचे गिर कर धंधा करने की इस शैली की जगह-जगह आलोचना भी हो रही है।
और अंत में....
कवर पेज में पूरा पृष्ठ विज्ञापन छपने को लेकर जितनी मुंह उतनी बाते हो रही है कोई इसे पत्रकारिता के लिए कलंक तो कोई इसे बेशर्मी करार दे रहा है। ऐसे में इस अखबार से जुड़े पत्रकार की प्रतिक्रिया थी। अखबारी जमीन पर शॉपिंग मॉल मुफ्त में थोड़ी बन जाएगा।
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