पत्रकारों की मांग पर सरकार ने पेंशन देने की घोषणा की तो सभी पत्रकार खुश थे उन्हें लगने लगा था कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा लेकिन योजना की शर्तों से उनकी खुशी काफूर होने लगी है। योजना कहां से और कैसे बनी इनके नियम शर्ते कहां से आये इस पर सवाल उठने लगे है। जितनी मुंह उतनी बातें होने लगी है। पत्रकारों में इस बात की चर्चा खूब है कि सरकार ने पेंशन योजना की शर्तों में जनसंपर्क के कुछ अधिकारी और अखबार मालिकों की सलाह मान ली जिसकी वजह से कुछ ऐसी शर्ते जोड़ी गई ताकि कम से कम पत्रकारों को इस योजना का लाभ मिले। मजिठिया आयोग की सिफारिश लागू करने में आनाकानी करने वाले अखबार मालिकों की बात छोड़ भी दें तो ऐसे अखबार मालिकों की कमी नहीं है जो अपने अखबार में काम करने वाले पत्रकार को अपना कर्मचारी नहीं मानते ऐसे में पेंशन योजना की नियुक्ति पत्र की शर्ते कैसे पूरी हो पायेगी।
हालांकि पत्रकारों ने भी रास्ता अख्तियार कर लिया है और संपादक से लिखवाने लगे है कि पूर्णकालिन कर्मचारी न ही कम से कम यह तो लिख दें कि कुछ महीने या साल से काम कर रहे हैं। इसके बाद भी आवेदनों में कमी बेहद कमी है।
प्रेस क्लब का विवाद...
जब से छत्तीसगढ़ राज्य बना है प्रेस क्लब के पदों पर बैठने की होड़ मची हुई है। रायपुर प्रेस क्लब का अपना रूतबा है और इसी रूतबे को भुनाने में कुछ पत्रकार लगे हैं। हालांकि यह कोई गलत भी नहीं है लेकिन गलत तब होता है जब पदाधिकारियों की लालच बढ़ जाती है। पद का मोह अच्छे अच्छों का ईमान डिगा देता है। इससे पहले अनिल पुसदकर और गोकुल सोनी को तो पद का इतना मोह था कि वे पांच साल जंमे रहे। सदस्यों को मुहिम चलानी पड़ी। समिति गठन करना पड़ा तब कहीं बड़ी मुश्किल से चुनाव हुए। चुनाव में बृजेश चौबे अध्यक्ष बने तो उनका भी पद का मोह जाग गया। अन्य पदाधिकारी भी चुनाव ही नहीं कराना चाहते। महासचिव विनय शर्मा हो या उपाध्यक्ष के के शर्मा, सभी अपने को पदों पर चिपकाये हुए हैं। कार्यकाल समाप्त हुए साल बित गये पर कुर्सी से चिपकने का मोह नहीं छुट रहा है।
सुशांत राजपूत कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले पहले पदाधिकारी थे फिर एक-एक कर अध्यक्ष को छोड़ सब इस्तीफा देने का दावा कर रहे हैं लेकिन जैसे ही कोई कार्यक्रम होता है सभी इकट्ठे नजर आते हैं।
इस कार्यकाल में कर्मचारियों से विवाद के लिए पदाधिकारियों की पहचान बन गई है। प्रेस क्लब के कर्मचारियों से झगड़ा करते पदाधिकारियों की करतूतों पर सभी हतप्रभ हैं।
सोमा पहुंची हरिभूमि
बेहतर वेतन और बड़े बैनर का मोह भला किसे नहीं है। छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता दिखाने वाली सोमा शर्मा अब हरिभूमि पहुंच गई है। जबकि लोकसभा चुनाव के पहले और भी आवाशाही की चर्चा है।
और अंत में...
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर खेर की जयंति पर आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में अध्यक्ष को छोड़ प्रेस क्लब के पदाधिकारी गायब थे तो अनिल पुसदकर भी नजर आये। पत्रकारों की टिप्पणी थी कि वक्त पर चुनाव हो जाये बस यही खेर साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें