छत्तीसगढ़ में इन दिनों मीडिया के लिए माहौल ठीक नहीं है। एक तरफ हैट्रिक में जुटी सरकार का दबाव है तो दूसरी तरफ दीगर राजनैतिक पार्टियों का दबाव भी कम नहीं है उपर से सोशल मीडिया की भ्रम फैलाने वाले तेवर भी कम हैरान करने वाले नहीं है।
्रहालांकि मीडिया के लिए या स्थिति कतई नई नहीं है। सरकारें कोई भी हो अपनी करतूत छुपाने वह मीडिया पर दबाव का सहारा लेती ही हे फिर छत्तीसगढ़ में बैठी भाजपा सरकार भी इससे अलग नहीं है। कोयले की कालिख पूते चेहरे से जब देख लुंगा जैसी आवाजे निकले तो मामला और भी मुश्किल हो जाता है।
रमन राज में वैसे भी माफिया गिरी बढ़ी है और अब तक करीब आधा दर्जन पत्रकार माफिया गिरी के शिकार हो चुके है। बिलासपुर के पाठक हत्याकांड हो या छूरा के राजपूत हत्याकांड हो सभी में पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही है।
इस सबके बीच सुखद स्थिति यह है कि सरकार विरोधी खबरों को पूरी तरह से रोकने में सरकारी तंत्र विफल रहा है। और वह खबर रोकने नये-नये हथकंडे अपना रही है।
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प्रतिष्ठा दांव पर
छत्तीसगढ़ में जब से पत्रिका का पदार्पण हुआ है पुराने प्रतिष्ठित माने जाने वाले अखबारों की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। पत्रिका के तेवर से सरकार में बेचैनी बढ़ी है तो पुराने लोगों को भी प्रतिस्पर्धा के चलते खबरें छापनी पड़ रही है।
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जनता से रिश्ता...
केन्द्रीय मंत्री नारायण सामी को कालिख पोतने के विवाद में आये पप्पू फरिश्ता ने अखबार खोल लिया है। इस अखबार में उन्होंने सनत चतुर्वेदी, अनिरूह दुबे जैसे पत्रकारों को रखा है। कहते है कभी इसी तरह का खेल कुख्यात बालकृष्ण अग्रवाल ने खेला था और तब भी राजनारायण मिश्र, एम.ए. जोसेफ, नारायण भोई अहफाज रशीद जैसे लोग झांसे में आ कर बाद में खूब पछताये थे।
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अमन का पथ
वैसे तो राजधानी में कई अखबार खुल और बंद हो रहे हैं जनदखल में अपना दखल दिखा चुके देवराज सिंह पवार इस बार अमन पथ लेकर आये हैं इस पथ की चर्चा अभी शुरू नहीं हो पाई है इसकी वजह यहां काम करने वाले पत्रकार दूसरी जगह ज्यादा समय दे रहे हैं।
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और अंत में...
कांग्रेसियों पर नक्सली हमला के बाद सरकार को सर्वदलीय बैठक बुलाने की सलाह जिस पत्रकार ने दी थी उसी पत्रकार ने कांग्रेस को बहिष्कार की भी सलाह दी।
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