रविवार, 24 फ़रवरी 2019

ट्रोल आर्मी के निशाने पर पत्रकारिता



वैसे तो पत्रकारिता का स्वर्णीम काल कभी नहीं रहा। आलोचना हर किसी को बर्दाश्त नहीं होता वो तो मजबूरी है वरना वे आलोचना करने वालों को सरेआम पीट दे या मार तक डालें।
इन दिनों पत्रकारिता पर नये तरह के खतरे पैदा होने लगा है। नेता या अधिकारी आलोचना करने वाले पत्रकारों को सीधे पीटवाने की बजाय उन्हें देशद्रोही साबित कर भीड़ के हाथों पिटवा देने का षडय़ंत्र रचने लगे हैं।
एनडी टीवी के पत्रकार रविश कुमार की माने तो दो हजार चौदह में कोई अवतारी पुरुष आया जिसकी आलोचना नहीं हो सकती जिससे सवाल नहीं किये जा सकते और ऐसा करने वालों को देशद्रोही बता दो ताकि भीड़ उन्हें मार तक डाले।
पिछले दिनों भाजपा कार्यालय में एक पत्रकार के साथ पिटाई हुई और इस मारपीट में भाजपा के नेता फंस गये। लेकिन अब वे लोग ज्यादा सचेत हैं इसलिए वे अब खबरों पर ट्रोल करने लगे। पिछले दिनों भास्कर में छपी एक कार्टून को ट्रोल किया गया। और उस कार्टून को देश विरोधी बताते हुए अखबार को पढऩा बंद कर देने की अपील की गई। प्रवीण मैसेरी नामक इस भाजपा नेता के ट्रोल पर अन्य भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया होने लगी और यह पूरा ट्रोल आर्मी के शक्ल में तब्दिल हो गया। इनमें से कितने लोगों ने भास्कर की प्रति अपने घर में बंद की यह तो पता नहीं लेकिन कल तक भास्कर को अपना अखबार बताने वाले भाजपा नेता का इस अखबार को रातों रात देशद्रोही बता देना हैरानी भरा है।
अवतारी पुरुष का यह ट्रोल आर्मी किस तरह से पत्रकारिता पर हमला कर रहा है वह आने वाले दिनों में पत्रकारिता के लिए नये खतरे पैदा कर रहा है। भीड़ के हाथों कब कौन पत्रकार के पीटे जाने की खबरें आ जाए कहा नहीं जा सकता है।
स्वागत है दाऊजी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सांईस कालेज में जब यह घोषणा की कि उनकी सरकार किसी का फोन टेपिंग नहीं करायेगी तो यह पत्रकारों के लिए खुशी का मौका था।
क्योंकि पिछली सरकार यानी रमन सिंह की सरकार ने जिस तरह से अपने विरोधियों का फोन टेप कराये थे उसकी वजह से कई पत्रकारों के लिए फोन पर बात करना असहज हो गया था। एक डर बना रहता था कि सरकार पता नहीं किस मामले में जन सुरक्षा कानून लगाकर जेल में डाल दें। कई नामचीन पत्रकारों के फोन ही नहीं टेप किये जा रहे थे बल्कि वे किससे मिलते जुलते हैं उन्हें खबर कहां से मिलती है इसका भी हिसाब किताब सरकार रख रही थी। एक अज्ञात भय में जीने को मजबूर थे ऐसे में जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फोन टेप नहीं कराने की घोषणा की तो इसका चौतरफा स्वागत हुआ है। अपने राजनैतिक फायदे के लिए जिस तरह से रमन सरकार ने फोन टेप कराया वह किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरनाक है और ऐसी कार्रवाई शर्मनाक कही जानी चाहिए।
मीटिंग की ऐसी की तैसी
राजधानी से प्रकाशित हो रहे कई नामचीन अखबारों में मीटिंग की प्रक्रिया से कई पत्रकार दुखी है खासकर सिटी रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों का गुस्सा आये दिन सार्वजनिक होने लगता है। दरअसल इस तरह की मीटिंग से समय श्रम व धन की बर्बादी के रुप में देखा जा रहा है तो कुछ गलत भी नहीं है। सब काम धाम छोड़कर 11-12 बजे कार्यालय में बुलाई जाने वाली इस तरह मीटिंग में ज्यादा कुछ होता तो है नहीं उल्टे परेशानी जरुर होती है। जबकि आज हाई टेक्नोलाजी का जमाना है और इस तरह मीटिंग में टेक्नालाजी का इस्तेमाल करना भी चाहिए ताकि पत्रकारों को इस पीड़ा से निजाद मिल सके।
और अंत में...
पन्द्रह साल तक सत्ता की मलाई खाने वाले कुछ पत्रकारों में भाजपा के प्रति वफादारी का यह आलम है कि वे एक तरफ भूपेश बघेल की तारीफ के कसीदे गढ़ रहे है और भाजपा कार्यालय में केन्द्र सरकार की वापसी का दावा करते हैं।

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